वक़्त : A Dedication to college memories and friends!
वक़्त ना ठहरा, ना रुका ना सुना बस चलता गया चलता गया मैं इस जीवन का मुसाफ़िर वक़्त के संग ढलता गया ढलता गया। बसंत बीते कई पर ये चार ना बीत पाएंगे, जब भी मुड़ देखूँगा इन्हे बीते लम्हो की याद दिलाएंगे। वो जूनून, वो जोश, वो तमन्ना, वो उमंग लेकर जिन्हे हम सब, चले थे एक दूजे के संग शायद संग तब ना थे, पर है संग अब आज के बिछड़े हम, न जाने अब मिलेंगे कब। आज, मेरी अधूरी आशाओं और बिछड़ने के दर्द को वो, अनसुना कर गया.. वक़्त ना ठहरा, ना रुका ना सुना बस चलता गया चलता गया मैं इस जीवन का मुसाफ़िर वक़्त के संग ढलता गया ढलता गया।। गम है बहुत और हम है लाचार जिनके साथ बीते थे वो याराना पल उनके बिना अब सब कुछ लगेगा भार अब तो बस, है उन यादों का सहारा जो इन ' चार सालों ' में मिला अब ना मिलेगा दोबारा। कामना है मेरी, केवल मेरे मन से कि तू देना मेरा साथ, हमेशा याद रहे वो सब जो याद है आज,...